Bhopal, प्रवीण शर्मा. 1 जून को कोरोना (corona) के केवल 5 नए संक्रमित (Positive) निकले तो अगले दिन केवल 303 लोगों ने प्रीकॉशन डोज Precaution Dose (बूस्टर ) लगवाया, लेकिन जैसे ही 3 जून को नए संक्रमित 12 मिले अगले दो दिनों में बूस्टर लेने 491 व 738 पहुंच गए। 19 जून को नए संक्रमित 25 क्या निकले, अगले ही दिन 1218 लोगों ने बूस्टर डोज लगवा लिया, 21 जून को तो आंकड़ा 1500 को क्रास कर गया। सोचिए, लोग केवल डर के मारे कोविड से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। सरकार ने 10 जनवरी से तीसरा डोज लगाने की व्यवस्था कर दी है। शुरू में केवल हेल्थ वर्कर और फ्रंटलाइन वर्कर (Health and Frontline workers) को तीसरा डोज लग रहा था तो 11 अप्रेल से हर खास-ओ-आम को बूस्टर (Booster) डोज लगाने की व्यवस्था की गई है। चूक केवल यह है कि इसे स्वैच्छिक कर दिया। परिणाम, छह महीने में प्रदेश भर में केवल 18 लाख 16 हजार 993 लोगों ने ही बूस्टर डोज लगवाया है। आम लोगों की तो छोड़िए, हेल्थ और फ्रंटलाइन वर्करों ने भी अब बूस्टर डोज को गंभीरता से नहीं लिया है। बूस्टर डोज लगवाने के लिए लोगों की मानसिकता को बूस्टअप (Boostup) करने की जरूरत सबसे पहले है।
यह चौंकाने वाली लापरवाही का आलम तब है, जब दूसरी लहर में पूरा देश व प्रदेश कोरोना का कहर झेल चुका है। लॉकडाउन (Lockdown) में लोग सख्त पाबंदियों को तोड़ते हुए भी वैक्सीन (Covid Vaccsine) का पहला और दूसरा डोज लगवाने पहुंच रहे थे। अपने सारे संपर्क, संबंध और रुतबे का इस्तेमाल कर जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाने में जुटे थे। मगर अब इस वैश्विक बीमारी से खुद को बचाने के लिए कितने सजग और सतर्क हैं, इसका अंदाजा बूस्टर डोज से ही लगाया जा सकता है। लोग केवल उसी दिन बूस्टर डोज टीकाकरण केंद्रों की तरफ दौड़ते हैं, जब नए संक्रमित एकमुश्त निकल आते हैं। वरना दिन भर में पूरे जिले में 100-150 लोग भी प्रीकॉशंन डोज नहीं लगवा रहे। यह आंकड़े प्रदेश की राजधानी के हैं, जहां लेागों से सबसे पहले समझदारी दिखाने की उम्मीद की जाती है। जब राजधानी के यह हाल हैं तो दूरदराज के गांवों व छोटे शहरों के लोगों की लापरवाही का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। एक तो लोगों ने खुद ही कोविड के प्रोटोकॉल( Protocall) से किनारा कर रखा है, उस पर वैक्सीन का बूस्टर डोज लेने में भी कतरा रहे हैं। इसी नजरअंदाजी का परिणाम है कि राजधानी में ही बीते तीन महीने में बमुश्किल 1़13 लाख लोगों ने ही बूस्टर डोज लगवाया है। जबकि प्रदेश भर में यह आंकड़ा 18 लाख तक पहुंचा है। इसके दुष्परिणाम यह है कि हाल ही में जबलपुर में कोरोना के एक मरीज की मौत हाल ही में दर्ज की गई है। वहीं नए संक्रमित भी आए दिन बढ़ रहे है। बावजूद इसके लोग तभी बूस्टर डोज लगवाने दौड़ते हैं जब पॉजिटिव केस ज्यादा निकलते हैं।यानी लोगों ने कोरोना का डर तो है, लेकिन इससे बचाव के तरीके अपनाने को कोई तैयार नहीं है।
पॉजिटिव केस बढ़ने पर लगा रहे दौड़
महीने भर का लेखा जोखा गवाह है कि भोपाल में लोग वैक्सीन लगवाने के लिए कोरोना संक्रमितों की संख्या देखते रहते हैं, जिस दिन संक्रमितों की संख्या बढ़ जाती है उसके अगले दिन वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या एकदम से बढ़ जाती है। आंकड़े बताते हैं कि लोग सतर्कता के कारण नहीं, बल्कि कोरोना के डर से वैक्सीन लगवा रहे हैं। महीने की जब शुरूआत हुई तो महज 5 नए पॉजिटिव केस निकले थे। इससे बूस्टर डोज लेने वालों की संख्या मई महीने के समान ही स्थिर बनी हुई थी, लेकिन 3 जून को जैसे ही 12 संक्रमित मिले, अगले ही दिन से बूस्टर लेने वाले बढ़ गए। अगले दिन यानी 4 जून को 491 तो 5 जून को 738 लोगों ने प्रीकॉशंस डोज लगवाया। फिर संक्रमित कम मिले तो वैक्सीन लगवाने वाले भी कम हो गए। इसके बाद फिर जैसे ही संक्रमित बढ़े तो लोग वैक्सीन लगवाने के लिए दौड़कर पहुंचे। 9 और 10 जून को नए संक्रमित क्रमश: 16 व 18 मिले तो बूस्टर लेने भी रोजाना 700 से ज्यादा लोग पहुंचने लगे। संक्रमित फिर कम हुए तो बूस्टर डोज लगवाने वाले भी 100 के आसपास रह गए। दूसरे पखवाड़े में रोजाना 18 से 30 के बीच नए संक्रमित सामने आ रहे है। तो प्रीकॉशंस डोज लेने प्रतिदिन एक हजार से डेढ़ हजार लोग पहुंच रहे है।
छुट्टी के दिन भी नहीं हिल रहे लोग
भोपाल को परंपरागत रूप से बाबूओं का शहर कहा जाता है। माना जाता है कि यहां के लोग कोई भी एक्सट्रा काम शनिवार और रविवार की छुट्टी के दिन करते हैं, लेकिन बूस्टर डोज के मामले में यह भोपाल का यह ट्रेंड भी टूटता नजर आया है। शनिवार और रविवार के दिन भी लोगों ने वैक्सीन के लिए स्लॉट बुक नहीं कराया। महीने के पहले रविवार को जरूर यह आंकड़ा 700 के पार था, इसकी वजह थी पहली बार बढ़ा आंकड़ा। इसके बाद तीनों रविवार को आंकड़ा काफी कम रहा। दूसरे रविवार को मात्र 131 तो तीसरे रविवार को जिले भर में महज 287 लोगों ने ही बूस्टर डोज लिया।
हेल्थ वर्कर भी नहीं हैं गंभीर
केंद्र सरकार (Central Government) के निर्देश पर तीसरे दौर में बूस्टर डोज लगाने की शुरूआत जनवरी में की गई थी। सबसे पहले हेल्थ वर्कर और फ्रंट लाइन वॉरियर्स के अलावा 60 साल से अधिक उम्र वालों को बूस्टर डोज दिया जाना था। हेल्थ वर्कर और फ्रंटलाइन वर्कर्स की संख्या ही एक लाख के करीब थी। जानकारी के अनुसार प्रदेश में 6 जनवरी से शुरू हुए तीसरे चरण के टीकाकरण में 43 हजार 987 हेल्थ वर्कर व 51 हजार 607 फ्रंटलाइन वर्कर को बूस्टर डोज लगना था। इनके अलावा राजधानी में 60 साल से अधिक वाले 2 लाख 8 हजार 414 लोगों को भी बूस्टर डोज लगना था। मगर लापरवाही का आलम यह है कि छह महीने बाद भी बूस्टर डोज लेने वालों की संख्या बमुश्किल एक लाख के पार पहुंच सकी है। आज 28 जून तक बूस्टर डोज लेने वालों की कुल संख्या 1 लाख 14 हजार 690 हो सकी है। आंकड़े गवाह हैं कि मरीजों की सेवा में सक्रिय हेल्थ वर्कर व फ्रंटलाइन वर्कर्स ने भी अभी तक प्रीकॉशन डोज लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। साठ साल से अधिक उम्र वालों की बात तो दूर की है। यह स्थिति भी तब है जब प्रदेश में सरकारी और प्रायवेट हेल्थ सेक्टर में करीब 68 लाख हेल्थ वर्कर मौजूद हैं। पहली और दूसरी लहर में फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में भी कई लोगों ने पंजीयन कराया था। करीब 30 तरह की संस्थाओं और संवर्ग को मिलाकर करीब सवा दो करोड़ लोग मरीजों की सेवा करने के लिए आगे आए थे।
क्या कहते हैं आंकड़े
- दिन पॉजिटव बूस्टर
यहां फ्री लग रहा है बूस्टर
स्वास्थ्य विभाग ने राजधानी में कुल 21 सरकारी और निजी अस्पतालों में बूस्टर डोज लगाने की व्यव्स्था की है। सरकारी अस्पतालों में पहले और दूसरे डोज की तरह बूस्टर भी फ्री में लगाया जा रहा है। वहीं चार प्रायवेट अस्पतालों में भी 386 रुपए के रियायती दर पर कोविशील्ड और कोवैक्सीन का तीसरा डोज लगाया जा रहा है। इन प्रायवेट अस्पतालों में पीपुल्स, हजेला, रोशन तथा नेशनल हास्पिटल शामिल हैं। जबकि फ्री डोज की व्यवस्था एम्स, बीएमएचआरसी, गांधी मेडिकल कालेज जीएमसी, जेपी हास्पिटल, काटजू हास्पिटल केएनके, जवाहर लाल नेहरू हास्पिटल डीआईजी बंगला, कस्तूरबा हास्पिटल भेल, रेलवे हास्पिटल निशातपुरा, ईएसआईसी अस्पताल के अलावा सिविल हास्पिटल बैरागढ़, संजीवनी क्लीनिक सुभाष नगर, सिविल डिस्पेंसरी सीडी बाग सेवनियां, सीडी 1100 क्वार्टर, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सीएचसी बैरसिया, सीएचसी गांधीनगर, सीएचसी कोलार, पीएचसी मिसरौद में भी प्रीकॉशन डोज लगाए जा रहे हैं। बूस्टर डोज लगवाने के लिए पहले से पंजीयन कराना पड़ता है। सभी अस्पतालों के लिए स्लॉट तय किए गए हैं, लेकिन इक्का दुक्का को छोड़कर या किसी विशेष दिन को छोड़कर बाकी सभी में हर दिन के स्लॉट खाली पड़े रहते हैं।
खाली पड़े स्लॉट, वैक्सीन बर्बाद होने का भी खतरा
राजधानी में जो 21 वैक्सीन सेंटर बनाए गए हैं, उनमें से सभी खाली पड़े रहते हैं। प्रत्येक सेंटर पर सरकार ने 500 डोज प्रतिदिन के हिसाब से रखवाए हैं, लेकिन पूरे जिले में ही 500 का आंकड़ा एक दिन में पूरा नहीं हो पा रहा है। इसी महीने में कई दिनों में एक दिन में बूस्टर डोज लेने वालों का आंकड़ा सौ से कम रहा है। इसका परिणाम यह है कि जहां सभी केंद्रों में स्लॉट खाली पड़े रहते हैं। वहीं दुखद स्थिति यह है कि वैक्सीन खराब होने का खतरा बना रहता है। 18 से 59 वर्ष के लोगों के लिए 10 अप्रैल से शुरू हुए वैक्सीकरण के बाद लोगों की दिलचस्पी न होने के कारण प्रदेश में रखी वैक्सीन गुजरात भेजना पड़ गई थी। भोपाल के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. कमलेश अहिरवार भी मानते हैं कि प्रचार प्रचार की कमी है, लेकिन जन जागरुकता की कमी को वे बूस्टर डोज के मामले में गति न होने को मुख्य वजह मानते हैं। डॉ. अहिरवार का कहना है कि हेल्थ वर्कर्स को भी जागरूक करने की जरूरत है। कोरोना को हराना है तो सभी को मिलकर जागरुकता दिखाना होगी। एक—दूसरे को इस मामले में आगे बढ़ाना होगा।
प्रचार- प्रसार की कमी, सख्ती भी जरूरी
इस जानलेवा लापरवाही के लिए कहीं न कहीं सरकार की सुस्ती भी जिम्मेदार है। पहले और दूसरे चरण में तो स्वास्थ्य विभाग ने वैक्सीनेशन का प्रचार—्प्रसार भी जमकर किया था। इसके लिए हर स्तर पर जन जागरुकता अभियान भी शहरों से गांव तक चलाए गए थे। मगर बूस्टर डोज के लिए ऐसे कोई प्रयास डिपार्टमेंट ने ही नहीं किए हैं। अपने हेल्थ वर्कर को ही विभाग अब तक मोटिवेट नहीं कर सका है। इसी का परिणाम है कि स्पेशल मूव चलाने के बाद भी हेल्थ वर्कर और फ्रंटलाइन वर्कर भी बूस्टर डोज लगवाने नहीं पहुंचे हैं।